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<h1 class="center">सिद्धान्तकौमुदी</h1>
<h2 class="center chapter">॥ अथ स्वरप्रकरणम् ॥</h2>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3650">3650:</span> अनुदात्तं पदमेकवर्जम् </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-158.html" title="AVG 6-1-158" target="_blank">6-1-158</a>)
<p>
परिभाषेयं स्वरविधिविषया । यस्मिन्पदे यस्योदात्तः स्वरितो वा विधीयते तमेकमचं वर्जयित्वा शेषं
तत्पदमनुदात्ताच्कं स्यात् । गोपायतं नः (गो॒पा॒यतं॑ नः) । अत्र सनाद्यन्ताः--<a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK2304" title=" सनाद्यन्ता धातवः "><sup>2304</sup></a> इति धातुत्वे धातुस्वरेण यकाराकार उदात्तः शिष्टमनुदात्तम् ॥ <span class="vartika" title="वार्तिकम्">सति शिष्टस्वरबलीयस्त्वमन्यत्र विकरणेभ्य इति वाच्यम् </span> (वा) ॥ तेनोक्तोदाहरणे गुपेर्धातुस्वर आयस्य प्रत्ययस्वरश्च न शिष्यते । अन्त्रेति किम् । यज्ञं यज्ञम्भिवृधे गृणीतः (य॒ज्ञं य॑ज्ञम॒भिवृ॒धे गृ॑णी॒तः) । अत्र सति शिष्टोऽपि श्ना इत्यस्य स्वरो न शिष्यते किं तु तस एव ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3651">3651:</span> अनुदात्तस्य च यत्रोदात्तलोपः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-161.html" title="AVG 6-1-161" target="_blank">6-1-161</a>)
<p>
यस्मिन्ननुदात्ते परे उदात्तो लुप्यते तस्योदात्तः स्यात् । देवीं वाचम् (दे॒वीं वाच॑म्) । अत्र ङीबुदात्तः ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3652">3652:</span> चौ </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-222.html" title="AVG 6-1-222" target="_blank">6-1-222</a>)
<p>
लुप्ताकारेऽञ्चतौ परे पूर्वस्यान्तोदात्तः स्यात् । उदात्तनिवृत्तिस्वरापवादः । देवद्रीचीं नयत देवयन्तः (दे॒व॒द्रीचीं॑ नयत देव॒यन्तः॑) ॥ <span class="vartika" title="वार्तिकम्">अतद्धित इति वाच्यम् </span> (वा) ॥ दाधीचः । माधूचः । प्रत्ययस्वर एवात्र ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3653">3653:</span> आमन्त्रितस्य च </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-198.html" title="AVG 6-1-198" target="_blank">6-1-198</a>)
<p>
आमन्त्रित स्यादिरुदात्तः स्यात् । अग्न इन्द्र वरुण मित्र देवाः (अग्न॒ इन्द्र॒ वरु॑ण॒ मित्र॒ देवाः॑) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3654">3654:</span> आमन्त्रितस्य च </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/8-1-19.html" title="AVG 8-1-19" target="_blank">8-1-19</a>)
<p>
पदात्परस्यापादादिस्थितस्यामन्त्रितस्य सर्वस्यानुदात्तः स्यात् । प्रागुक्तपाष्टस्यापवादोऽयमाष्टमिकः । इमं मे गङ्गे यमुने सरस्वति (इ॒मं मे॑ गङ्गे यमुने सरस्वति) । अपादादौ किम् । शुतुद्रि स्तोमम् (शुतु॑द्रि॒ स्तोम॑म्) । आमन्त्रितं पूर्वमविद्यमानवत् <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK412" title=" आमन्त्रितं पूर्वमविद्यमानवत् "><sup>412</sup></a> । अग्न॒ इन्द्र॑ । अत्रेन्द्रादीनां निघातो न । पूर्वस्याविद्यमानत्वेन पदात्परत्वाभावात् । नामन्त्रिते समानाधिकरणे सामान्यवचनम् <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK413" title=" नामन्त्रिते समानाधिकरणे सामान्यवचनम् "><sup>413</sup></a> समानाधिकरण आमन्त्रिते परे विशेष्यं पूर्वमविद्यमानवन्न । अग्ने तेजस्विन् (अग्ने॑ तेजस्विन्) । अग्ने त्रातः (अग्ने॑ त्रातः) । सामान्यवचनं किम् । पर्यायेषु मा भूत् । अघ्न्ये देवि सरस्वति (अघ्न्ये॑ देवि सरस्वति) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3655">3655:</span> सामान्यवचनं विभाषितं विशेषवचने </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/8-1-74.html" title="AVG 8-1-74" target="_blank">8-1-74</a>)
<p>
अत्र भाष्यकृता बहुवचनमिति पूरितम् । सामान्यवचनमिति च पूर्वसूत्रे योजितम् । आमन्त्रितान्ते विशेषणे परे पूर्वं बहुवचनान्तमविद्यमानवद्वा । द्वेवीः पलुर्वीरुरु नः कृणोत (द्वेवीः॑ पलुर्वीरु॒रु नः॑ कृणोत) । अत्र देवीनां विशेषणं षडिति । देवाशरण्याः । इह द्वितीयस्य निघातो वैकल्पिकः ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3656">3656:</span> सुबामन्त्रिते पराङ्गवत्स्वरे </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/2-1-2.html" title="AVG 2-1-2" target="_blank">2-1-2</a>)
<p>
सुबन्तमामन्त्रिते परे परस्याङ्गवत्स्वरे कर्तव्ये । द्रवत्पाणी शुभस्तपती (द्रव॑त्पाणी॒ शुभ॑स्पती) । शुभ इति शुभेः क्विबन्तात्षष्ठ्यन्तस्य परशरीरानुप्रवेशे पाष्ठिकमामन्त्रिताद्युदात्तत्वम् । न चाष्टमिको निघातः शङ्क्यः । पूर्वामन्त्रितस्याविद्यमानत्वेन पादादित्वात् । यत्ते दिवो दुहितर्मर्त भोजनम् (यत्ते॑ दिवो दुहितर्मर्त॒ भोज॑नम्) । इह दिवःशब्दस्याष्टमिको निघातः । परशुना वृश्चन् ॥ <span class="vartika" title="वार्तिकम्">षष्ठ्यामन्त्रितकारकवचनम् </span> (वा) ॥ षष्ठ्यन्तमामन्त्रितान्तं प्रति यत्कारकं तद्वाचकं चेति परिगणनं कर्तव्यमित्यर्थः । तेनह न । अयमग्ने जरिता (अ॒यम॑ग्ने जरि॒ता ) । एतेनाग्ने ब्रह्मणा (ए॒तेना॑ग्ने॒ ब्रह्म॑णा) । समर्थानुवृत्त्या वा सिद्धम् ॥ <span class="vartika" title="वार्तिकम्">पूर्वाङ्गवच्चेति वक्तव्यम् </span> (वा) ॥ आ ते पितर्मरुताम् (आ ते॑ पितर्मरुताम्) । प्रति त्वा दुहितर्दिवः (प्रति॑ त्वा दुहितर्दिवः) ॥ <span class="vartika" title="वार्तिकम्">अव्ययानां न </span> (वा) ॥ उच्चारधीयान ॥ <span class="vartika" title="वार्तिकम्">अव्ययीभावस्य त्विष्यते </span> (वा) ॥ उपाभ्यधीयान ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3657">3657:</span> उदात्तस्वरितयोर्यणः स्वरितोऽनुदात्तस्य </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/8-2-4.html" title="AVG 8-2-4" target="_blank">8-2-4</a>)
<p>
उदात्तस्थाने स्वरितस्थाने च यो यण् ततः परस्यानुदात्तस्य स्वरितः स्यात् । अभ्यभि हि । स्वरितस्य यणः । खलप्व्याशा । अस्य स्वरितस्य त्रैपादिकत्वेनासिद्धत्वाच्छेषनिघातो न ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3658">3658:</span> एकादेश उदात्तेनोदात्तः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/8-2-5.html" title="AVG 8-2-5" target="_blank">8-2-5</a>)
<p>
उदात्तेन सहैकादेश उदात्तः स्यात् । वोऽश्वाः । क्वावरं भरुतः (क्वाव॑रं भरुतः) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3659">3659:</span> स्वरितो वानुदात्ते पदादौ </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/8-2-6.html" title="AVG 8-2-6" target="_blank">8-2-6</a>)
<p>
अनुदात्ते पदादौ परे उदात्तेन सहैकादेशः स्वरितो वा स्यात् । पक्षे पूर्वसूत्रेणोदात्तः । वी1दं ज्योतिर्ह्रदये (वी॑1॒दं॒ ज्योति॒र्हृद॑ये) । अस्य श्लोको दिवीयते (अस्य श्लोको॑ दि॒वीय॑ते) । व्यवस्थितविभाषात्वादिकारयोः स्वरितः । दीर्घप्रवेशे तूदात्तः । किं च एङः पदान्तात्-<a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK86" title=" एङः पदान्तादति "><sup>86</sup></a> इति पूर्वरूपे स्वरित एव । तेऽवदनम् (ते॑ऽवदनम्) । सो 3 यमागात् (सो॒ 3॒॑ यमागा॑त्) । उक्तं च प्रातिशाख्ये । इकारयोश्च प्रश्लेषे क्षैपाभिनिहतेषु चेति ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3660">3660:</span> उदात्तादनुदात्तस्य स्वरितः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/8-4-66.html" title="AVG 8-4-66" target="_blank">8-4-66</a>)
<p>
उदात्तात्परस्यानुदात्तस्य स्वरितः स्यात् । अग्निमीळे (अ॒ग्निमी॑ळे) । अस्याप्यसिद्धत्वाच्छेषनिघातो न । तमीशानासः (तमी॑शा॒नासः॑) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3661">3661:</span> नोदात्तस्वरितोदयमगार्ग्यकाश्यपगालवानाम् </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/8-4-67.html" title="AVG 8-4-67" target="_blank">8-4-67</a>)
<p>
उदात्तपरः स्वरितपरश्चानुदात्तः स्वरितो न स्यात् । गार्ग्यादिमते तु स्यादेव । प्रय आरुः (प्र य आ॒रुः) । वोश्वाः क्वा 1 भीशवः (वोश्वाः क्वा॑ 1॒ भीश॑वः) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3662">3662:</span> एकश्रुति दूरात्संबुद्धौ </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/1-2-33.html" title="AVG 1-2-33" target="_blank">1-2-33</a>)
<p>
दूरात्संबोधने वाक्यमेकश्रुतिः स्यात् । त्रैस्वर्यापवादः । आगच्छ भो माणवक ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3663">3663:</span> यज्ञकर्मण्यजपन्यूङ्खसामसु </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/1-2-34.html" title="AVG 1-2-34" target="_blank">1-2-34</a>)
<p>
यज्ञक्रियायां मन्त्र एकश्रुतिः स्याज्जपादीन्वर्जयित्वा । अग्निर्मूधा (अ॒ग्निर्मू॒र्धा) । दिवः ककुत् (दि॒वः क॒कुत्) । यज्ञेति किम् । स्वनाध्यायकाले त्रैस्वर्यमेव । अजपेति किम् । ममाग्ने वर्चो विहवेष्वस्तु (ममा॑ग्ने॒ वर्चो॑ विह॒वेष्व॑स्तु) । जपो नाम उपांशुप्रयोगः । यथा जले निमग्नस्य । न्यूङ्खा नाम षोडश ओकाराः । गीतिषु सामाख्या ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3664">3664:</span> उच्चैस्तरां वा वषट्कारः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/1-2-35.html" title="AVG 1-2-35" target="_blank">1-2-35</a>)
<p>
यज्ञकर्मणि वौषट्शब्द उच्चैसत्रां वा स्यादेकश्रुतिर्वा ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3665">3665:</span> विभाषा छन्दसि </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/1-2-36.html" title="AVG 1-2-36" target="_blank">1-2-36</a>)
<p>
छन्दसि विभाषा एकश्रुतिः स्यात् । व्यवस्थितविभाषेयम् । संहितायां त्रैस्वर्यम् । ब्राह्मणे एकश्रुतिर्बह्वृचानाम् । अन्येषामपि यथासंप्रदायं व्यवस्था ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3666">3666:</span> न सुब्रह्मण्यायां स्वरितस्य तूदात्तः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/1-2-37.html" title="AVG 1-2-37" target="_blank">1-2-37</a>)
<p>
सुब्रह्मण्याख्ये निगदे यज्ञकर्मणि <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK3663" title=" यज्ञकर्मण्यजपन्यूङ्खसामसु "><sup>3663</sup></a> इति विभाषा छन्दसि <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK3635" title=" कःकरत्करतिकृधिकृतेष्वनदितेः "><sup>3635</sup></a> इति च प्राप्ता एकश्रुतिर्न स्यात्स्वरितस्योदात्तश्च स्यात् । सुब्रह्मण्यो3म् ॥ (सुब्रह्मणि साधुरिति यत् । न च एकादेश उदात्तोनोदात्तः <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK3658" title=" एकादेश उदात्तेनोदात्तः "><sup>3658</sup></a> इति सिद्धे पुनरत्रेमुदात्तविधानं व्यर्थमिति वाच्यम् । तत्रानुदात्त इत्यस्यानुवृत्तेः ॥<span class="vartika" title="वार्तिकम्">असावित्यन्तः </span> (वा) ॥ तस्मिन्नेव निगदे प्रथमान्तस्यान्त उदात्तः स्यात् । गार्ग्यो यजते । ञित्त्वात्प्राप्त आद्युदात्तोऽनेन बाध्यते ॥ <span class="vartika" title="वार्तिकम्">अमुष्येत्यन्तः </span> (वा) ॥ <span class="vartika" title="वार्तिकम्">स्यान्तस्योपोत्तमं च </span> (वा) ॥ चादन्तस्येन द्वावुदात्तौ । गार्ग्यस्य पिता यजते ॥ <span class="vartika" title="वार्तिकम्">वा नामधेयस्य </span> (वा) ॥ स्यान्तस्य नामधेयस्य उपोत्तममुदात्तं वा स्यात् । देवदत्तस्य पिता यजते ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3667">3667:</span> देवब्रह्मणोरनुदात्तः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/1-2-38.html" title="AVG 1-2-38" target="_blank">1-2-38</a>)
<p>
अनयोः स्वरितस्यानुदात्तः स्यात्सुब्रह्मण्यायाम् । देवाब्रह्माण आगच्छत ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3668">3668:</span> स्वरितात्संहितायामनुदात्तानाम् </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/1-2-39.html" title="AVG 1-2-39" target="_blank">1-2-39</a>)
<p>
स्वरितात्परेषामनुदात्तानां संहितायामेकश्रुति स्यात् । इमं मे गङ्गे यमुने सरस्वति (इ॒मं मे॑ गङ्गे यमुने सरस्वति) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3669">3669:</span> उदात्तस्वरितपरस्य सन्नतरः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/1-2-40.html" title="AVG 1-2-40" target="_blank">1-2-40</a>)
<p>
उदात्तस्वरितौ परौ यस्मात्तस्यानुदात्तस्यादात्ततरः स्यात् । सरस्वति शुतुद्रि (सरस्वति॒ शुतु॑द्रि) । व्यचक्षयत्स्वः (व्य॑चक्षय॒त्स्वः॑) । तस्य परमाम्रेडितम् <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK83" title=" तस्य परमाम्रेडितम् "><sup>83</sup></a> ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3670">3670:</span> अनुदात्तं च </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/8-1-3.html" title="AVG 8-1-3" target="_blank">8-1-3</a>)
<p>
द्विरुक्तस्य परं रूपमनुदात्तं स्यात् । दिवे दिवे (दि॒वे दि॑वे) ॥ इति साधारणस्वराः ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3671">3671:</span> धातोः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-162.html" title="AVG 6-1-162" target="_blank">6-1-162</a>)
<p>
अन्त उदात्तः स्यात् । गोपायतं नः (गो॒पा॒यतं॑ नः) । असि सत्यः (असि॑ स॒त्यः) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3672">3672:</span> स्वपादिहिंसामच्यनिटि </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-188.html" title="AVG 6-1-188" target="_blank">6-1-188</a>)
<p>
स्वपादीनां हिंसेश्चानिठ्यजादौ लसार्वधातुके परे आदिरुदात्तो वा स्यात् । स्वपादिरदाद्यन्तर्गणः । स्वपन्ति । श्वसन्ति । हिंसन्ति । पक्षे प्रत्ययस्वरेण मध्योदात्तता । क्ङित्येवेष्यते । नेह स्वपानि । हिनसानि ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3673">3673:</span> अभ्यस्तानामादिः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-189.html" title="AVG 6-1-189" target="_blank">6-1-189</a>)
<p>
अनिठ्यजादौ लसार्वधातुके परे अभ्यस्तानामादिरुदात्तः । ये ददति प्रिया वसु (ये दद॑ति प्रि॒या वसु॑) । परत्वाच्चित्स्वरमयं बाधते । दधाना इन्द्रे दधाना इन्द्रे ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3674">3674:</span> अनुदात्ते च </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-190.html" title="AVG 6-1-190" target="_blank">6-1-190</a>)
<p>
अविद्यमानोदात्ते लसार्वधातुके परेऽभ्यस्तानामादिरुदात्तः । दधासि रत्नं द्रविणं च दाशुषे (दधा॑सि॒ रत्नं॒ द्रवि॑णं च दा॒शुषे॑) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3675">3675:</span> भीह्रीभृहुमदजनधनदरिद्राजागरां प्रत्ययात्पूर्वं पिति </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-192.html" title="AVG 6-1-192" target="_blank">6-1-192</a>)
<p>
भीप्रभृतीनामभ्यस्तानां पिति लसार्वधातुके परे प्रत्ययात्पूर्वमुदात्तं स्यात् । योऽग्निहोत्रं जुहोति (यो॑ऽग्निहो॒त्रं जु॒होति॑) । मत्तु नः परिज्मा (म॒मत्तु॑ नः॒ परि॑ज्मा) । माता यद्वीरं दधनत् (मा॒ता यद्वी॒रं द॒धनत्) । जागर्षित्वम् ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3676">3676:</span> लिति </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-193.html" title="AVG 6-1-193" target="_blank">6-1-193</a>)
<p>
प्रत्ययात्पूर्वमुदात्तम् । चिकीर्षकः ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3677">3677:</span> आदिर्णमुल्यन्यतरस्याम् </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-194.html" title="AVG 6-1-194" target="_blank">6-1-194</a>)
<p>
अभ्यस्तानामादिरुदात्तो वा णमुलि परे लोलूयंलोलूयम् । पक्षे लित्स्वरः ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3678">3678:</span> अचः कर्तृयकि </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-195.html" title="AVG 6-1-195" target="_blank">6-1-195</a>)
<p>
उपदेशेऽजन्तानां कर्तृयकि परे आदिरुदात्तो वा । लूयते केदारः स्वयमेव ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3679">3679:</span> चङ्यन्यतरस्याम् </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-218.html" title="AVG 6-1-218" target="_blank">6-1-218</a>)
<p>
चङन्ते धातावुपोत्तममुदात्तं वा । मा हि चीकरताम् । धात्वकार उदात्तः । पक्षान्तरे चङुदात्तः ॥ इति धातुस्वराः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3680">3680:</span> कर्षात्वतो घञोन्त उदात्तः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-159.html" title="AVG 6-1-159" target="_blank">6-1-159</a>)
<p>
कर्षतेर्धातोराकारवतश्च घञन्तस्यान्त उदात्तः स्यात् । कर्षः । शपा निर्देशात्तुदादेराद्युदात्त एव । कर्षः । पाकः ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3681">3681:</span> उञ्छादीनां च </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-160.html" title="AVG 6-1-160" target="_blank">6-1-160</a>)
<p>
अन्त उदात्तः स्यात् । उञ्छादिषु युगशब्दो घञन्तोऽगुणो निपात्यते कालविशेषे रथाद्यवयवे च । वैश्वानरः कुशिकेभिर्युगेयुगे (वै॒श्वा॒न॒रः कु॑शि॒केभि॑र्यु॒गेयु॑गे) । अन्यत्र योगेयोगे तवस्तरम् (योगे॑योगे त॒वस्त॑रम्) । भक्षशब्दो घञन्तः । गावः सोमस्य तवस्तरम् (गावः॒ सोम॑स्य त॒वस्त॑रम्) । भक्षशब्दो घञन्तः । गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः (गावः॒ सोम॑स्य प्रथ॒मस्य॑ भ॒क्षः) । उत्तमशश्वत्तमावपि । उदुत्तमं वरुण (उदु॑त्त॒मं व॑रुण) । शश्वत्तममीलते (श॒श्व॒त्त॒ममी॑लते) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3682">3682:</span> चतुरः शसि </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-167.html" title="AVG 6-1-167" target="_blank">6-1-167</a>)
<p>
चतुरोन्त उदात्तः शसि परे । चतुरः कल्पयन्तः । अचि र-<a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK299" title=" अचि र ऋतः "><sup>299</sup></a> इति रादेशस्य पूर्वविधौ स्थानिवत्त्वान्नेह । चतस्रः पश्य । चतेरुरन् । नित्त्वादाद्युदात्तता ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3683">3683:</span> झल्युपोत्तमम् </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-180.html" title="AVG 6-1-180" target="_blank">6-1-180</a>)
<p>
षट्त्रिचतुर्भ्यो या झलादिर्विभक्तिस्तदन्ते पदे उपोत्तममुदात्तं स्यात् । अध्वर्युभिः पञ्चभिः (अ॒ध्व॒र्युभिः॑ प॒ञ्चभिः॑) । नवभिर्वाजैर्नवती (न॒वभि॑र्वाजै॑र्नव॒ती) । च (च॑) । सप्तम्भोजायमानः (स॒प्तम्भो॒जाय॑मानः) । आदशभिर्विवस्वतः (आद॒शभि॑र्वि॒वस्व॑तः) । उपोत्तमं किम् । आषड्भिर्हूयमानः (आष॒ड्भिर्हू॒यमानः) । विश्वैर्दवैस्त्रिभिः (विश्वैर्दे॒वैस्त्रि॒भिः॑) । झलि किम् । नवानां नवतीनाम् (न॒वा॒नां न॑वती॒नाम्) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3684">3684:</span> विभाषा भाषायाम् </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-189.html" title="AVG 6-1-189" target="_blank">6-1-189</a>)
<p>
उक्तविषये ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3685">3685:</span> सर्वस्य सुपि </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-191.html" title="AVG 6-1-191" target="_blank">6-1-191</a>)
<p>
सुपि परे सर्वशब्दस्यादिरुदात्तः स्यात् । सर्वे नन्दन्ति यशसा (सर्वे॑ नन्दन्ति य॒शसा॑) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3686">3686:</span> ञ्नित्यादिर्नित्यम् </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-197.html" title="AVG 6-1-197" target="_blank">6-1-197</a>)
<p>
ञिदन्तस्य चादिरुदात्तः स्यात् । यस्मिन्विश्वानि पौंस्या (यस्मि॒न्विश्वा॑नि॒ पौंस्या॑) । पुंसः कर्मणि ब्राह्मणादित्वात् ष्यञ् । सुते दधिष्व नश्चनः (सु॒ते द॑धिष्व न॒श्चनः॑) । चायतेरसुन् । चायेरन्ने ह्रस्वश्च <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%89639" title=" चायतेरन्ने ह्रस्वश्च "><sup>उ639</sup></a> इति चकारादसुनो नुडागमश्च ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3687">3687:</span> पथिमथोः सर्वनामस्थाने </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-199.html" title="AVG 6-1-199" target="_blank">6-1-199</a>)
<p>
आदिरुदात्तः स्यात् । अयं पन्थाः (अ॒यं पन्थाः॑) सर्वनामस्थाने किम् । ज्योतिष्मः पथो रक्ष (ज्योति॑ष्मतः प॒थो र॑क्ष) । उदात्तनिवृत्तिस्वरेणान्तोदात्तं पदम् ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3688">3688:</span> अन्तश्च तवैयुगपत् </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-200.html" title="AVG 6-1-200" target="_blank">6-1-200</a>)
<p>
तवैप्रत्ययान्तस्याद्यन्तौ युगपदाद्युदात्तौ स्तः । हर्षसे दातवा उ (हर्षसे॒ दात॒वा उ॑) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3689">3689:</span> क्षयो निवासे </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-201.html" title="AVG 6-1-201" target="_blank">6-1-201</a>)
<p>
आद्युदात्तः स्यात् । स्वे क्षये शुचिव्रत (स्वे क्षये॑ शुचिव्रत) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3690">3690:</span> जयः करणम् </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-202.html" title="AVG 6-1-202" target="_blank">6-1-202</a>)
<p>
करणवाची जयशब्द आद्युदात्तः स्यात् । जयत्यनेन जयोऽश्वः ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3691">3691:</span> वृषादीनां च </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-203.html" title="AVG 6-1-203" target="_blank">6-1-203</a>)
<p>
आदिरुदात्तः । आकृतिगणोऽयम् । वाजेभिर्वाजिनीवती (वाजे॑भिर्वा॒जिनी॑वती) । इन्द्रं वाणीः (इन्द्रं(आ) वाणीः॑) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3692">3692:</span> संज्ञायामुपमानम् </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-204.html" title="AVG 6-1-204" target="_blank">6-1-204</a>)
<p>
उपमान शब्दः संज्ञायामाद्युदात्तः । चञ्चेव चञ्चा । कनोऽत्र लुप् । एतदेव ज्ञापयति क्वचित्स्वरविधौ
प्रत्ययलक्षणं नेति । संज्ञायां किम् । अग्निर्माणवकः । उपमानं किम् । जैत्रः ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3693">3693:</span> निष्ठा च द्व्यजनात् </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-205.html" title="AVG 6-1-205" target="_blank">6-1-205</a>)
<p>
निष्ठान्तस्य द्व्यचः संज्ञायामादिरुदात्तो न त्वाकारः । दत्तः । द्व्यच् किम् । चिन्तितः । अनात्किम् । त्रातः । संज्ञायामित्यनुवृत्तेर्नेह । कृतम् । हृतम् ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3694">3694:</span> शुष्कधृष्टौ </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-206.html" title="AVG 6-1-206" target="_blank">6-1-206</a>)
<p>
एतावाद्युदात्तौ स्तः । असंज्ञार्थमिदम् । अत सं न शुष्कम् (अत॒ सं न शुष्क॑म् ) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3695">3695:</span> आशितः कर्ता </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-207.html" title="AVG 6-1-207" target="_blank">6-1-207</a>)
<p>
कर्तृवाची आशितशब्द आद्युदात्तः । कृषन्नित्फाल आशितम् (कृ॒षन्नित्फाल॒ आशि॑तम्) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3696">3696:</span> रिक्ते विभाषा </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-208.html" title="AVG 6-1-208" target="_blank">6-1-208</a>)
<p>
रिक्तशब्दे वाऽऽदिरुदात्तः । रिक्तः । संज्ञायां तु निष्टा च द्व्यजनात् <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK3693" title=" निष्ठा च द्व्यजनात् "><sup>3693</sup></a> इति नित्यमाद्युदात्तत्वं पूर्वविप्रतिषेधेन ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3697">3697:</span> जुष्टार्पिते च छन्दसि </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-209.html" title="AVG 6-1-209" target="_blank">6-1-209</a>)
<p>
आद्युदात्ते वा स्तः ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3698">3698:</span> नित्यं मन्त्रे </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-210.html" title="AVG 6-1-210" target="_blank">6-1-210</a>)
<p>
एतत्सूत्रं शक्यमकर्तुम् । जुष्टो दमूनाः (जुष्टो॒ दमू॑नाः) । षळर आहुरर्पितम् (षळ॑र आहु॒रर्पि॑तम्) । इत्यादेः पूर्वेणैव सिद्धेः । छन्दसि पाठस्य व्यवस्थिततया विपरीतापादनायोगात् । अर्पिताः षर्ष्टिर्न च लाचलासः (अ॒र्पि॒ताः ष॒र्ष्टिर्न च॑लाच॒लासः॑) । इत्यत्रान्तोदात्तदर्शनाच्च ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3699">3699:</span> युष्मदस्मदोर्ङसि </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-211.html" title="AVG 6-1-211" target="_blank">6-1-211</a>)
<p>
आदिरुदात्तः स्यात् । नहिषस्तव नो मम ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3700">3700:</span> ङयि च </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-212.html" title="AVG 6-1-212" target="_blank">6-1-212</a>)
<p>
तुभ्यं हिन्वानः (तुभ्यं॑ हिन्वा॒नः) । मद्यं वातः पवताम् (मद्यं॒ वातः॑पवताम्) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3701">3701:</span> यतोऽनावः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-213.html" title="AVG 6-1-213" target="_blank">6-1-213</a>)
<p>
यत्प्रत्ययान्तस्य द्व्यच आदिरुदात्तो नावं विना । यञ्जन्त्यस्य काम्या (यु॒ञ्जन्त्य॑स्य काम्या॑) । कमेर्णिङन्तादचो यत् । झ्र्अनावः किम् । नवतिं नाव्यानाम् (न॒व॒तिं ना॒व्याना॑म्) ।ट
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3702">3702:</span> ईडवन्दवृशंसदुहां ण्यतः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-214.html" title="AVG 6-1-214" target="_blank">6-1-214</a>)
<p>
एषां ण्यदन्तानामादिरुदात्तः । ईड्यो नूतनैरुत (ईड्यो॒ नूत॑नैरु॒त) । आजुह्वान ईड्यो (आ॒जुह्वा॑न॒ ईड्यो॒) । श्रेष्ठं नो धेहिवार्यम् (श्रेष्ठं नो धेहि॒ वार्यम्) । उक्थमिन्द्राय शंस्यम् (उक्थमिन्द्रा॑य॒ शंस्य॑म्) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3703">3703:</span> विभाषा वेण्विन्धानयोः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-215.html" title="AVG 6-1-215" target="_blank">6-1-215</a>)
<p>
आदिरुदात्तो वा । इन्थानो अग्निम् (इन्धा॑नो अ॒ग्निम्) ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3704">3704:</span> त्यागरागहासकुहश्वठक्रथानाम् </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-216.html" title="AVG 6-1-216" target="_blank">6-1-216</a>)
<p>
आदिरुदात्तो वा । आद्यास्त्रयो घञन्ताः । त्रयः पचाद्यजन्ताः ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3705">3705:</span> मतोः पूर्वमात्संज्ञायां स्त्रियाम् </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-219.html" title="AVG 6-1-219" target="_blank">6-1-219</a>)
<p>
मतोः पूर्वमाकार उदात्तः स्त्रीनाम्नि । उदुम्बरावती । शरावती ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3706">3706:</span> अन्तोऽवत्याः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-220.html" title="AVG 6-1-220" target="_blank">6-1-220</a>)
<p>
अवतीशब्दस्यान्त उदात्तः । वेत्रवती । ङीपः पित्त्वादनुदात्तत्वं प्राप्तम् ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SK3707">3707:</span> ईवत्याः </span>
(<a href="http://avg-sanskrit.org/sutras/6-1-221.html" title="AVG 6-1-221" target="_blank">6-1-221</a>)
<p>
ईवत्यन्तस्यापि प्राग्वत् । अहीवती । मुनीवती ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि1">फि1:</span> फिषोऽन्त उदात्तः </span>
(10-1-1)
<p>
प्रातिपदिकं फिट् । तस्यान्त उदात्तः स्यात् । उच्चैः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि2">फि2:</span> पाटलापालङ्काम्बासागरार्थानाम् </span>
(10-1-2)
<p>
एतदर्थानामन्त उदात्तः । 'पाटला' 'फलेरुहा' 'सुरूपा' 'पाकला' इति पर्यायाः । लघावन्ते-- <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF42" title=" लघावन्ते द्वयोश्च बह्वषो गुरुः "><sup>फि42</sup></a> इति प्राप्ते । 'अपालङ्क' 'व्याधिघात' 'आरेवत' 'आरग्वध' इति पर्यायाः । अम्बार्थः । माता । 'उनर्वन्नन्तानाम्' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF32" title=" उनर्वन्नन्तानाम् "><sup>फि32</sup></a> इत्याद्युदात्तत्वे प्राप्ते । सागरः । समुद्रः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि3">फि3:</span> गेहार्थानामस्त्रियाम् </span>
(10-1-3)
<p>
गेहम् । 'नब्विषयस्य--' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF26" title=" नब्विषयस्यानिसन्तस्य "><sup>फि26</sup></a> इति प्राप्ते । 'अस्त्रियाम्' किम् । शाला । आद्युदात्तोऽयम् । इहैव पर्युदासाज्ज्ञापकात् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि4">फि4:</span> गुदस्य च </span>
(10-1-4)
<p>
अन्त उदात्तः स्यान्न तु स्त्रियाम् । गुदम् । 'अस्त्रियाम्' किम् 'आमन्त्रेभ्य॑स्ते॒ गुदा॑भ्यः' ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि5">फि5:</span> ध्यपूर्वस्य स्त्रीविषयस्य </span>
(10-1-5)
<p>
धकारयकारपूर्वो योऽन्त्योच्स उदात्तः । अन्तर्धा । 'स्त्रीविषयवर्ण--' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF43" title=" स्त्रीविषयवर्णाक्षुपूर्वाणाम् "><sup>फि43</sup></a> इति प्राप्ते । छा॒या । मा॒या । जा॒या । 'यान्तस्यान्त्यात्पूर्वम्' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF62" title=" यान्तस्यान्त्यात्पूर्वम् "><sup>फि62</sup></a> इत्याद्युदात्तत्वे प्राप्ते । 'स्त्री' इति किम् । बाह्यम् । यञन्तत्वादाद्युदात्तत्वम् । 'विषयग्रहणम्' किम् । इभ्या । क्षत्रिया । 'यतोऽनावः' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK3701" title=" यतोऽनावः "><sup>3701</sup></a> इत्याद्युदात्त इभ्यशब्दः । क्षत्रियशब्दस्तु 'यान्तस्यान्त्यात्पूर्वम्' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF62" title=" यान्तस्यान्त्यात्पूर्वम् "><sup>फि62</sup></a> इति मध्योदात्तः ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि6">फि6:</span> खान्तस्याश्मादेः </span>
(10-1-6)
<p>
नखम् । उखा । सुखम् । दुःखम् । नखस्य 'स्वाङ्गशिटाम्--' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF29" title=" स्वाङ्गशिटामदन्तानाम् "><sup>फि29</sup></a> इत्याद्युदात्तत्वे प्राप्ते । उखा नाम भाण्डविशेषः । तस्य कृत्रिमत्वात् 'खय्युवर्णं कृत्रिमाख्या चेत्' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF31" title=" खय्युवर्णं कृत्रिमाख्या चेत् "><sup>फि31</sup></a> इत्युवर्णस्योदत्तत्वे प्राप्ते । सुखदुःखयोः 'नब्विषयस्य--' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF26" title=" नब्विषयस्यानिसन्तस्य "><sup>फि26</sup></a> इति प्राप्ते । 'अश्मादेः किम् । शिखा । मुखम् । मुखस्य 'स्वाङ्गशिटाम्--' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF29" title=" स्वाङ्गशिटामदन्तानाम् "><sup>फि29</sup></a> इति वा आद्युदात्तत्वम् । शिखायास्तु 'शीङः खो निद्ध्रस्वश्च' इत्युणादिषु नित्त्वोक्तेरन्तरङ्गत्वाट्टापः प्रागेव 'स्वाङ्गशिटाम्--' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF29" title=" स्वाङ्गशिटामदन्तानाम् "><sup>फि29</sup></a> इति वा बोध्यम् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि7">फि7:</span> बंहिष्ठवत्सर्तिशत्थानाम् </span>
(10-1-7)
<p>
एषामन्त उदात्तः स्यात् । अतिशयेन बहुलो बंहिष्ठः । नित्त्वादाद्युदात्तत्वे प्राप्ते । 'बंहिष्ठै॑रश्वै॑ः सु॒वृता॒ रथे॒न । 'यद्बंहिष्ठं नाति॒विधे॑ इत्यादौ व्यत्ययादाद्युदात्तः । संवत्सरः । अव्ययपूर्वपदप्रकृतिस्वरोऽत्र बाध्यत इत्याहुः । सप्ततिः । अशीतिः । 'लघावन्ते--' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF42" title=" लघावन्ते द्वयोश्च बह्वषो गुरुः "><sup>फि42</sup></a> इति प्राप्ते । चत्वारिंशत् । इहापि प्राग्वत् । 'अभ्यू॑र्ण्वाना प्र॑भृ॒थस्या॒योः' । अव्ययपूर्वपदप्रकृतिस्वरोऽत्र बाध्यत इत्याहुः । थाथादिसूत्रेण गतार्थमेतत् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि8">फि8:</span> दक्षिणस्य साधौ </span>
(10-1-8)
<p>
अन्त उदात्तः स्यात् । साधुवाचित्वाभावे तु व्यवस्थायां सर्वनामतया 'स्वाङ्गशिटाम्--' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF29" title=" स्वाङ्गशिटामदन्तानाम् "><sup>फि29</sup></a> इत्याद्युदातः । अर्थान्तरे तु 'लघावन्ते--' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF42" title=" लघावन्ते द्वयोश्च बह्वषो गुरुः "><sup>फि42</sup></a> इति गुरुरुदात्तः ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि9">फि9:</span> स्वाङ्गाख्यायामादिर्वा </span>
(10-1-9)
<p>
इह दक्षिणस्याद्यन्तौ पर्यायेणोदात्तौ स्तः । दक्षिणो बाहुः । 'आख्याग्रहणम्' किम् । प्रत्यङ्मुखस्यासीनस्य वामपाणिर्दक्षिणो भवति ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि10">फि10:</span> छन्दसि च </span>
(10-1-10)
<p>
अस्वाङ्गार्थमिदम् । दक्षिणः । इह पर्यायेणाद्यन्तावुदात्तौ ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि11">फि11:</span> कृष्णस्यामृगाख्या चेत् </span>
(10-1-11)
<p>
अन्त उदात्तः । 'वर्णानां तण--' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF33" title=" वर्णानां तणतिनितान्तानाम् "><sup>फि33</sup></a> इत्याद्युदात्तत्वे प्राप्ते अन्तोदत्तो विधीयते । कृष्णानां व्रीहीणां । 'कृ॒ष्णो॑ नोनाव वृष॒भः' । मृगाख्यायां तु । कृष्णो रात्र्यै ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि12">फि12:</span> वा नामधेयस्य </span>
(10-1-12)
<p>
कृष्णस्येत्येव । 'अ॒यं वा॑ कृ॒ष्णो अ॑श्विना' । कृष्णर्षिः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि13">फि13:</span> शुक्लगौरयोरादिः </span>
(10-1-13)
<p>
नित्यमुदात्तः स्यादित्येके । वेत्यनुवर्तत इति तु युक्तम् । 'सरो॑ गौ॒रो य॒था॒ वा' इत्यत्रान्तोदात्तत्वदर्शनात् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि14">फि14:</span> अङ्गुष्ठोदकबकवशानां छन्दस्यन्तः </span>
(10-1-14)
<p>
अङ्गुष्ठस्य 'स्वाङ्गानामकुर्वादीनाम्' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF52" title=" स्वाङ्गानामकुर्वादीनाम् "><sup>फि52</sup></a> इति द्वितीयस्योदात्तत्वे प्राप्तेऽन्तोदात्तर्थ आरम्भः । वशाग्रहणं नियमार्थं छन्दस्येवेति । तेन लोक आद्युदात्ततेत्याहुः ।
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि15">फि15:</span> पृष्ठस्य च </span>
(10-1-15)
<p>
छन्दस्यन्त उदात्तः स्याद्वा भाषायाम् । पृष्ठम् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि16">फि16:</span> अर्जुनस्य तृणाख्या चेत् </span>
(10-1-16)
<p>
'उनर्वन्नन्तानाम्' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF32" title=" उनर्वन्नन्तानाम् "><sup>फि32</sup></a> इत्याद्युदात्तस्यापवादः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि17">फि17:</span> आर्यस्य स्वाम्याख्या चेत् </span>
(10-1-17)
<p>
'यान्तस्यान्त्यात्पूर्वम्' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF62" title=" यान्तस्यान्त्यात्पूर्वम् "><sup>फि62</sup></a> इति 'यतोऽनावः' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK3701" title=" यतोऽनावः "><sup>3701</sup></a> इति वाद्युदात्ते प्राप्ते वचनम् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि18">फि18:</span> आशाया अदिगाख्या चेत् </span>
(10-1-18)
<p>
दिगाख्याव्यावृत्त्यर्थमिदम् । अत एव ज्ञापकाद्दिकपर्यायस्याद्युदात्तता । 'इन्द्र॒ आशा॑भ्य॒स्परि॒' ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि19">फि19:</span> नक्षात्राणामब्विषयाणाम् </span>
(10-1-19)
<p>
अन्त उदात्तः स्यात् । आश्लेषानुराधादीनां 'लघावन्ते--' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF42" title=" लघावन्ते द्वयोश्च बह्वषो गुरुः "><sup>फि42</sup></a> इति प्राप्ते ज्येष्ठाश्रविष्ठाधनिष्ठानामिष्ठन्नन्तत्वेनाद्युदात्ते प्राप्ते वचनम् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि20">फि20:</span> न कुपूर्वस्य कृत्तिकाख्या चेत् </span>
(10-1-20)
<p>
अन्त उदात्तो न । कृत्तिका नक्षत्रम् । केचित्तु कुपूर्वो य आप्तद्विषयाणामिति व्याख्याय 'आर्यिका' 'बहुलिका' इत्यत्राप्यन्तोदात्तो नेत्याहुः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि21">फि21:</span> घृतादीनां च </span>
(10-1-21)
<p>
अन्त उदात्तः । 'घृ॒तं मि॑मिक्षे' । आकृतिगणोऽयम् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि22">फि22:</span> ज्येष्ठकनिष्ठयोर्वयसि </span>
(10-1-22)
<p>
अन्त उदात्तः स्यात् । 'ज्ये॒ष्ठ आ॑ह चमसा' । 'कनिष्ठ आह चतुरः' । 'वयसि' किम् । ज्येष्ठः श्रेष्ठः । कनिष्ठोऽल्पिकः । इह नित्त्वादाद्युदात्त एव ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि23">फि23:</span> बिल्वतिष्ययोः स्वरितो वा </span>
(10-1-23)
<p>
अनयोरन्तः स्वरितो वा स्यात् । पक्ष उदात्तः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि24">फि24:</span> अथादिः प्राक् शकटेः </span>
(10-2-24)
<p>
अधिकारोऽयम् । 'शकटिशकट्योः--' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF69" title=" शकटिशकट्योरक्षरक्षरं पर्यायेण "><sup>फि69</sup></a> इति यावत् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि25">फि25:</span> ह्रस्वान्तस्य स्त्रीविषयस्य </span>
(10-2-25)
<p>
आदिरुदात्तः स्यात् । बलिः । तनुः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि26">फि26:</span> नब्विषयस्यानिसन्तस्य </span>
(10-2-26)
<p>
'व॒ने न वा॒ यः' । इसन्तस्य तु सर्पिः । नब्नपुंसकम् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि27">फि27:</span> तृणधान्यानां च द्व्यषाम् </span>
(10-2-27)
<p>
द्व्यचामित्यर्थः । कुशाः । काशाः । माषाः । तिलाः । बह्वचां तु गोधूमाः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि28">फि28:</span> न्रः सङ्ख्यायाः </span>
(10-2-28)
<p>
पञ्च । चत्वारः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि29">फि29:</span> स्वाङ्गशिटामदन्तानाम् </span>
(10-2-29)
<p>
शिट् सर्वनाम । 'कर्णा॑भ्या॒ं चुबु॑का॒दधि॑' । 'विश्वो॒ विहा॑य ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि30">फि30:</span> प्राणिनां कुपूर्वम् </span>
(10-2-30)
<p>
कवर्गात्पूर्व आदिरुदात्तः । काकः । वृकः । 'शुके॑षु मे' । 'प्राणिनाम्' किम् । 'क्षीरं सर्पिर्मधूदकम्' । कुपूर्वङ्किम् धनुः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि31">फि31:</span> खय्युवर्णं कृत्रिमाख्या चेत् </span>
(10-2-31)
<p>
खयि पर उवर्णमुदात्तं स्यात् । कन्दुकः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि32">फि32:</span> उनर्वन्नन्तानाम् </span>
(10-2-31)
<p>
उन । 'वरु॑णं वो रि॒शाद॑सम्' । ऋ । 'स्वसा॑रं त्वा कृणवै॒ । वन् । 'पीवा॑नं मेषम्' ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि33">फि33:</span> वर्णानां तणतिनितान्तानाम् </span>
(10-2-33)
<p>
आदिरुदात्तः । एतः । हरिणः । शितिः । पृश्निः । हरित् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि34">फि34:</span> ह्रस्वान्तस्य ह्रस्वमनृताच्छील्ये </span>
(10-2-34)
<p>
ऋद्वर्जं ह्रस्वान्तस्यादिभूतं ह्रस्वमुदात्तं स्यात् । मुनिः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि35">फि35:</span> अक्षस्यादेवनस्य </span>
(10-2-35)
<p>
आदिरुदात्तः । 'तस्य॒ नाक्ष॑ः' । देवने तु 'अ॒क्षैर्मा दी॑व्यः' ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि36">फि36:</span> अर्धस्यासमद्योतने </span>
(10-2-36)
<p>
अर्धो ग्रामस्य । समेंऽशके तु अर्धं पिप्पल्याः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि37">फि37:</span> पीतद्र्वर्थानाम् </span>
(10-2-37)
<p>
आदिरुदात्तः । पीतद्रुः सरलः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि38">फि38:</span> ग्रामादीनां च </span>
(10-2-38)
<p>
ग्रामः । सोमः । यामः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि39">फि39:</span> लुबन्तस्योपमेयनामधेयस्य </span>
(10-2-39)
<p>
चञ्चेव चञ्चा । 'स्फिगन्तस्य' इति पाठान्तरम् । स्फिगिति लुपः प्राचां संज्ञा ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि40">फि40:</span> न वृक्षपर्वतविशेषव्याघ्रसिंहमहिषाणाम् </span>
(10-2-40)
<p>
एषामुपमेयनाम्नामादिरुदात्तोअ न । ताल इव तालः । मेरुरिव मेरुः । व्याघ्रः । सिंहः । महिषः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि41">फि41:</span> राजविशेषस्य यमन्वा चेत् </span>
(10-2-41)
<p>
यमन्वा वृद्धः । आङ्गमुदाहरणम् । आङ्गाः प्रत्युदाहरणम् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि42">फि42:</span> लघावन्ते द्वयोश्च बह्वषो गुरुः </span>
(10-2-42)
<p>
अन्ते लघौ द्वयोश्च लघ्वोः सतोर्बह्वच्कस्य गुरुरुदात्तः । कल्याणः । कोलाहलः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि43">फि43:</span> स्त्रीविषयवर्णाक्षुपूर्वाणाम् </span>
(10-2-43)
<p>
एषां त्रयाणामाद्युदात्तः । स्त्रीविषयम् । मल्लिका । वर्णः । श्येनी । हरिणी । अक्षुशब्दात्पूरोऽस्त्येषां त अक्षुपूर्वाः । तरक्षुः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि44">फि44:</span> शकुनीनां च लघु पूर्वम् </span>
(10-2-44)
<p>
पूर्वं लघु उदात्तं स्यात् । कुक्कुटः । तित्तिरिः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि45">फि45:</span> नर्तुप्राणाख्यायाम् </span>
(10-2-45)
<p>
यथालक्षणं प्राप्तमुदात्तत्वं न । वसन्तः । कृकलासः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि46">फि46:</span> धान्यायां च वृद्धक्षान्तानाम् </span>
(10-2-46)
<p>
आदिरुदात्तः । कान्तानाम् । श्यामाकाः । षान्तानाम् । राजमाषाः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि47">फि47:</span> जनपदशब्दानामषान्तानाम् </span>
(10-2-47)
<p>
आदिरुदात्तः । केकयः । यान्तस्यान्त्यात् पूर्वमिति प्राप्ते ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि48">फि48:</span> हयादीनामसंयुक्तलान्तानामन्तः पूर्वं वा </span>
(10-2-48)
<p>
हयिति हल्संज्ञा । पललम् । शललम् । 'हयादीनाम्' किम् । एकलः । 'असंयुक्त--' इति किम् । मल्लः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि49">फि49:</span> इगन्तानां च द्व्यषाम् </span>
(10-2-49)
<p>
आदिरुदात्तः । कृषिः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि50">फि50:</span> अथ द्वितीयं प्रागीषात् </span>
(10-3-50)
<p>
'ईषान्तस्य हलादेः--' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF66" title=" ईषान्तस्य हयादेरादिर्वा "><sup>फि66</sup></a> इत्यतः प्राग्द्वितीयाधिकारः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि51">फि51:</span> त्र्यचां प्राङ्मकरात् </span>
(10-3-51)
<p>
'मकरवरूढ--' <a href="https://drdhaval2785.github.io/siddhantakaumudi/#SK%E0%A4%AB%E0%A4%BF57" title=" मकरवरूढपारेवतवितस्तेक्ष्वार्जिद्राक्षाकलोमाकाष्ठापेष्ठाकाशीनामादिर्वा "><sup>फि57</sup></a> इत्यतः प्राक्त्र्यचामित्यधिकारः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि52">फि52:</span> स्वाङ्गानामकुर्वादीनाम् </span>
(10-3-52)
<p>
कवर्गरेफवकारादीनि वर्जयित्वा त्र्यचां स्वाङ्गानां द्वितीयमुदात्तम् । ललाटम् । कुर्वादीनां तु । कपोलः । रसना । वदनम् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि53">फि53:</span> मादीनां च </span>
(10-3-53)
<p>
मलयः । मकरः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि54">फि54:</span> शादीनां शाकानाम् </span>
(10-3-54)
<p>
शीतन्या । शतपुष्पा ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि55">फि55:</span> पान्तानां गुर्वादीनाम् </span>
(10-3-55)
<p>
पादपः । आतपः । लघ्वादीनां तु । अनूपम् । द्व्यचां तु । नीपम् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि56">फि56:</span> युतान्यण्यन्तानाम् </span>
(10-3-56)
<p>
युत । अयुतम् । अनि । धमनिः । अणि । विपणिः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि57">फि57:</span> मकरवरूढपारेवतवितस्तेक्ष्वार्जिद्राक्षाकलोमाकाष्ठापेष्ठाकाशीनामादिर्वा </span>
(10-3-57)
<p>
एषामादिर्द्वितीयो वोदात्तः । मकरः । वरूढ इत्यादि ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि58">फि58:</span> छन्दसि च </span>
(10-3-58)
<p>
अमकराद्यर्थ आरम्भः । लक्ष्यानुसारादादिर्द्वितीयं चोदात्तं ज्ञेयम् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि59">फि59:</span> कर्दमादीनां च </span>
(10-4-59)
<p>
आदिर्द्वितीयो वोदात्तः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि60">फि60:</span> सुगन्धितेजनस्य ते वा </span>
(10-3-60)
<p>
आदिर्द्वितीयः तेशब्दश्चेति त्रयः पर्यायेणोदात्ताः । सुगन्धितेजनाः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि61">फि61:</span> नपः फलान्तानाम् </span>
(10-3-61)
<p>
आदिर्द्वितीयं वोदात्तम् । राजादनफलम् ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि62">फि62:</span> यान्तस्यान्त्यात्पूर्वम् </span>
(10-3-62)
<p>
कुलायः । तलयः । वलयः ॥
</p>
</div>
<div>
<span class="sutra" title="सूत्रम्"><span id="SKफि63">फि63:</span> थान्तस्य च नालघुनी </span>